LGBTQ को लेकर समाज के बदलते रवैए पर बोलीं शबाना आजमी- जो भी बदल रहा उसमें हिंदी सिनेमा का बहुत बड़ा हाथ 

बॉलीवुड डेस्क.एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी पर बनी फिल्म ‘शीर कोरमा’ में दिव्या दत्ता, स्वरा भास्कर के अलावा शबाना आजमी भी मुख्य भूमिका निभा रही हैं। शबाना का मानना है LGBTQ के प्रति लोगों का रवैया, हिन्दी सिनेमा के कारण हीतेजी से बदला है।ऐसी फिल्मों और बदलते सिनेमा पर उन्होंने खुलकर बातचीत की…।

यह एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी पर बनी फिल्म है। आपका किरदार क्या है?

मेरा जिस तरह का फिल्म में किरदार है, इस तरह के बहुत सारे लोगों को जानती हूं। यह उम्मीद करती हूं कि यह फिल्म देखने के बाद लोगों के अंदर वह भावना जागेगी। मेरा जो कैरेक्टर है, वह एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को एक्सेप्ट करता है। इससे एक जागृति ऑडियंस में पैदा होगी। यह मेरी उम्मीद है।

धारा 377 हटने के बाद ऐसी फिल्मों की वैल्यू क्या है?

एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के साथ बहुत नाइंसाफी हुई है। अब आहिस्ता-आहिस्ता समाज का रवैया बदल रहा है। परिवार क्या है! इसकी जो डेफिनेशन है, वह बदल रही है। आज देखने में आ रहा है कि मर्द एक बच्चे को अडॉप्ट कर रहा है। सिंगल औरतें अडॉप्ट कर रही हैं। यह पूरा कॉन्सेप्ट ही बदल रहा है। उसकी वजह से समाज में भी फर्क आ रहा है। मैं समझती हूं कि यह हिंदी सिनेमा का कॉन्ट्रिब्यूशन है। कमर्शियल सिनेमा ने एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को सिंसियरिटी के साथ देखा है, बजाय ऐसा कि उनका मजाक उड़ाया जाय। इसमें हिंदी सिनेमा का बहुत बड़ा हाथ है। ऐसा मेरा मानना है। इस तरह के सब्जेक्ट पर मैंने ‘फायर’ फिल्म की थी।

377 हटने के बाद ऐसा कौन सा ऐसा मुद्दा है, जिसे दूर किया जाना चाहिए?

पक्षपात। चूंकि हम जिनके बारे में जानते नहीं हैं, उनसे भयभीत होते हैं। हम डरते हैं तो हमारा एक रिएक्शन होता है कि नहीं, इन्हें टॉलरेट नहीं करना चाहिए। यह इंसानी नेचर का एक हिस्सा है। पूरी तब्दीली आते-आते बहुत टाइम लगता है। इसलिए मैं कहती हूं कि जिस कम्युनिटी के साथ नाइंसाफी होती है, उसको बहुत खास करना पड़ता है, जिससे वे आईडेंटिफाई हों। अगर मर्द है तब वह मेकअप क्यों लगाए हैं। यह जो फीलिंग होती है, मुझे लगता है कि समाज के तौर पर हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए।

आपको क्या लगता है कि इस तरह की फिल्में कम देखी जाती हैं?

हिंदी सिनेमा में इस तरह के कैरेक्टर को पहले हिकारत से देखते थे। उनका मजाक उड़ाया जाता था। लेकिन अब हम ऐसा नहीं सोचते हैं। ऐसी फिल्में लोग कम देखते हैं, ऐसा मुझे नहीं लगता है।

किरदार के लिए ट्रांसफॉर्मेशन करने के बारे में क्या कहेंगी?

मैं कितने सालों तक दो शिफ्ट करते आई हूं। उस समय हमारे पास इतनी सुविधा ही नहीं थी कि कैरेक्टर की तरह बाल बनाएं या वजन कम करें। फेशियल एक्सप्रेशन सीखें। आज फरहान ही को देखिए ‘तूफान’ के लिए पिछले एक साल से काम कर रहे हैं। वे कई सैक्रिफाइस भी कर रहे हैं।

सिनेमा जगत में इस तरह का और क्या बदलाव देखती हैं?

मुझे लगता है कि अलग-अलग तब्दीलियां आई हैं। पहले तो एक ही तरह के लोग और एक ही समाज के लोगों की तरफ हमारी नजर जाती थी। हम कभी देखते ही नहीं थे उस तरह के कैरेक्टर आज बाहर आ रहे हैं।



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Shabana Azmi on Hindi cinema had big hand in changing attitude of society regarding LGBTQ


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