कोरोना वायरस के कोहराम में घोड़ा-बग्गी का व्यापार चौपट, शादियां कैंसिल होने से इससे जुड़े लोग हो गए बेरोजगार

क्या इंसान और क्या जानवर। कोरोना के कहर ने किसी को नहीं छोड़ा है। हर किसी का हाल बेहाल है। कोरोना की कमर तोड़ने को लागू ‘महाबंद’ से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में करोड़ों रुपये का ‘घोड़ी-बघ्घी’ कारोबार चौपट हो गया है। इस काम से जुड़े कारोबारियों के सामने दो जून की रोटी के ही लाले तो पड़े हैं। इनसे जुड़े बेजुवान घोड़ा-घोड़ी भी भुखमरी के कगार पर हैं। इसकी वजह वही कि, जिन शादी-बारात के चंद दिनों में इन सबकी कमाई होती थी। वे शादी-ब्याह की रौनकें इस बार कोरोना के कोहराम में भेंट चढ़ गईं

। दिल्ली रेहड़ा तांगा एसोसिएशन के खजांची पवन सिंधी हीरानंद घोड़ीवाला ने बताया कि जो मौजूदा हालात अचानक बदले हैं या सामने खड़े हैं उनमें, जब साहब जिंदगी रहेगी, तभी तो बाकी बची जिंदगी की गुजर-बसर की सोचेंगे। फिलहाल तो अपनी, अपने परिवार की जिंदगी के साथ साथ दरवाजे पर बंधे खड़े बेजुबान ‘घोड़ा-घोड़ी’ की जिंदगी बचाने के लिए भी लाले पड़े हैं। सिंधी ने बताया कि ये प्योर सीजनल बिजनेस है। साल में एक-दो सप्ताह नवंबर-दिसंबर। उसके बाद असली काम अप्रैल-मई में मिल जाता है। पूरे साल में सबसे ज्यादा काम अक्षय तृतीया, तुलसी विवाह (नवंबर), देव उठान, वसंत पंचमी (फरवरी) में शादी-ब्याह का थोड़ा बहुत काम होता है।
धंधा चौपट होने से जिंदगी अचानक थमी नहीं, काफी पीछे चली गई

दिल्ली के घोड़ा-बघ्घी कारोबारी कमल प्रधान ने कहा, मैं सरकार को दोष नहीं दे सकता। लेकिन कोरोना ने कहीं का नहीं छोड़ा है, यह वो सच है जो, हर किसी को निगलना पड़ेगा। कोरोना की कमर तोड़ने के लिए जिंदगी अचानक थमी नहीं, सदियों पीछे चली गई है। शादियों में लोगों की शान-ओ-शौकत में चार चांद लगाने और अच्छा बिजनेस करने कराने वाले हम सब इस सीजन में बर्बाद हो चुके हैं। करोड़ों का बिजनेस कौड़ियों का नहीं रहा।

कमाने की बात दूर रही इस लॉकडाउन में जो बुकिंग थीं वो सब भी कैंसिल हो चुकी हैं। दिल्ली घोड़ा बघ्घी एसोसिएशन पदाधिकारी अशोक आहूजा के मुताबिक, दिल्ली में एक अनुमान के मुताबिक, 5-6 लाख लोग घोड़ा-बघ्घी बिजनेस से जुड़े हैं। इनमें मालिक, खल्लासी, लेबर, शू मेकर आदि सब जुड़े हैं। सालाना औसतन 50 करोड़ से ऊपर का कारोबार सिर्फ राजधानी में घोड़ा-बघ्घी का है। जबकि एक अंदाज से 5 हजार से ज्यादा घोड़ा-घोड़ी इस कारोबार में ‘धुरी’ की मानिंद जुड़े हैं। कोरोना के कहर ने इन सबको नेस्तनाबूद कर दिया है। रास्ता कोई नजर नहीं आता।



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